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आईपीएल की अनकही कहानी: क्रिकेट, इमोशन्स और विवाद

क्रिकेट दुनिया के लिए सिर्फ एक स्पोर्ट हो सकती है, लेकिन हमारे देश के लिए क्रिकेट सिर्फ एक स्पोर्ट नहीं है। भारत में क्रिकेट एक इमोशन है, एक ऐसा जुनून जिसे लोग कोलकाता में पूजा-अर्चना के साथ जीते हैं ताकि इंडिया पाकिस्तान को हरा सके। क्रिकेट वह खेल है जिसे भारत में हर किसी ने अपनी जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर खेला है। और इसी स्पोर्ट की सबसे बड़ी लीग है इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल)

आईपीएल का जन्म: एक सपने की शुरुआत

अठारह साल पहले एक इंसान ने ऐसा सपना देखा था जिसने भारतीय क्रिकेट के फ्यूचर को हमेशा के लिए बदल दिया। उन्होंने एक ऐसी लीग की कल्पना की थी जो दुनिया की सबसे बड़ी स्पोर्ट्स लीग बन जाए, जिसमें 200 मिलियन फैंस शामिल हों। जिस आइडिया को बीसीसीआई ने कई साल पहले रिजेक्ट कर दिया था, आज वो आइडिया लगभग 2 बिलियन डॉलर का एम्पायर बन चुका है। टीवी और ब्रॉडकास्ट राइट्स ने बीसीसीआई को 47,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कराई है, जिसने आईपीएल को दुनिया की सबसे मूल्यवान स्पोर्ट्स लीग्स में से एक बना दिया।

बड़े नाम और बड़ा खेल

पॉलिटिशियन्स, बिजनेस टाइकून्स से लेकर बॉलीवुड सेलिब्रिटीज़ तक, हर कोई आईपीएल का हिस्सा बनना चाहता है। मुकेश अंबानी, शाहरुख खान, और प्रीति जिंटा जैसे बड़े नामों ने आईपीएल टीम्स में निवेश किया है। लेकिन क्या ये सारे लोग क्रिकेट के प्यार में पागल हैं? क्या आईपीएल सिर्फ क्रिकेट के बारे में है? या फिर बात कुछ और ही है? ललित मोदी से जुड़े ईमेल्स में आरोप लगे कि उनका तीन आईपीएल टीम्स में फायदे का हित था, और उन्होंने 125 करोड़ रुपये का कमीशन लिया। बीसीसीआई ने ललित मोदी के लिए “नो एंट्री” का फरमान सुना दिया। श्रीसंत, अंकित चावला, और अजीत चंडीला जैसे खिलाड़ियों के नाम विवादों में आए, और चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) और राजस्थान रॉयल्स जैसी टीमें दो साल के लिए सस्पेंड हो गईं।

क्रिकेट या बिजनेस?

भारत में क्रिकेट के लिए जो शुद्ध इमोशन है, उसका इस्तेमाल करके लाखों डॉलर अपनी जेब में भरे जा रहे हैं, बिना किसी नैतिकता या सकारात्मक प्रभाव के। आईपीएल सिर्फ वो नहीं है जो आप अब तक समझ रहे थे। यह तीन घंटे के मैच से कहीं ज्यादा है। यह एक ऐसा बिजनेस मॉडल है जिसने अकल्पनीय कमाई की। लेकिन इसकी शुरुआत कैसे हुई?

ललित मोदी: आईपीएल के पीछे का मास्टरमाइंड

साल 1986 में, 23 साल का एक लड़का अमेरिका से पढ़ाई करके भारत लौट रहा था। वहां के एनबीए और एनएफएल के बिजनेस मॉडल ने उसे प्रेरित किया, और उसे भारत में एक बड़ी संभावना दिखी। 1995 में, उन्होंने 50 ओवर की फ्रेंचाइज़-बेस्ड टूर्नामेंट का आइडिया बीसीसीआई के सामने रखा, जिसका नाम था इंडियन क्रिकेट लीग लिमिटेड। लेकिन बीसीसीआई ने इसे रिजेक्ट कर दिया, क्योंकि वह बीसीसीआई का मेंबर नहीं था।

उन्होंने फैसला किया कि पहले बीसीसीआई का मेंबर बनना होगा। अपनी पॉलिटिकल कनेक्शन्स का इस्तेमाल करते हुए, खासकर राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मदद से, उन्होंने 2005 में राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का प्रेसिडेंट बनने में कामयाबी हासिल की। उसी साल बीसीसीआई के प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में उन्होंने शरद पवार की मदद की, जिसके बाद पवार बीसीसीआई के प्रेसिडेंट बने, और वह बीसीसीआई के वाइस प्रेसिडेंट। यह शख्स कोई और नहीं, ललित मोदी थे।

बीसीसीआई का उदय

ललित मोदी के बीसीसीआई में आने के बाद इसकी फाइनेंशियल स्थिति में जबरदस्त सुधार हुआ। 2005 से 2008 तक बीसीसीआई का रेवेन्यू सात गुना बढ़कर 1 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इस बीच, टी20 क्रिकेट का कॉन्सेप्ट दुनिया में उभर रहा था। 2002 में इंग्लैंड में टोबैको विज्ञापनों पर बैन के कारण बेन्सन एंड हेज कप की स्पॉन्सरशिप खत्म हो गई, जिसके बाद इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने 2003 में तेज़-तर्रार टी20 फॉर्मेट लॉन्च किया, जिसे बाद में टी20 ब्लास्ट कहा गया। यह फॉर्मेट दर्शकों को खूब पसंद आया, और स्टेडियम्स में पहले से कहीं ज्यादा भीड़ जुटने लगी। पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, और वेस्टइंडीज़ जैसे देशों ने भी इसे अपनाया, लेकिन भारत ने टी20 को क्रिकेट की बेइज्जती मानकर नजरअंदाज किया।

टी20 का क्रेज और आईपीएल की शुरुआत

फिर 2007 में आईसीसी ने पहला टी20 वर्ल्ड कप अनाउंस किया। भारत ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और एक युवा टीम भेजी। उसी दौरान, मीडिया राइट्स को लेकर विवाद चल रहा था। सुभाष चंद्रा की ज़ी एंटरटेनमेंट, जो भारत का सबसे बड़ा मीडिया ग्रुप था, को क्रिकेट ब्रॉडकास्टिंग राइट्स नहीं मिल रहे थे। गुस्से में, चंद्रा ने बीसीसीआई के खिलाफ इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल) लॉन्च कर दी। बीसीसीआई ने इसे रोकने के लिए गंदी रणनीतियां अपनाईं, जैसे आईसीएल से जुड़े खिलाड़ियों को इंटरनेशनल क्रिकेट से बैन करना और कपिल देव को नेशनल क्रिकेट एकेडमी से हटाना।

इसी बीच, ललित मोदी ने मौका भुनाया। 13 सितंबर 2007 को बीसीसीआई ने इंडियन प्रीमियर लीग की घोषणा की, जिसका पहला सीजन अप्रैल 2008 में शुरू होने वाला था। ललित मोदी ने टीम्स, स्पॉन्सरशिप और टीवी राइट्स की जिम्मेदारी ली। उनकी मार्केटिंग रणनीति ने मुकेश अंबानी जैसे बिलिनियर्स को आकर्षित किया, जिन्होंने मुंबई की टीम 436 करोड़ में खरीदी। शाहरुख खान और प्रीति जिंटा जैसे बॉलीवुड सितारे भी जुड़े। 2007 के टी20 वर्ल्ड कप फाइनल में भारत और पाकिस्तान का मुकाबला हुआ, जिसमें भारत की जीत ने टी20 का क्रेज बढ़ा दिया। सोनी ने आईपीएल के 10 साल के ब्रॉडकास्टिंग राइट्स 8,200 करोड़ में खरीदे, और 18 अप्रैल 2008 को केकेआर बनाम आरसीबी का पहला मैच खेला गया, जिसने क्रिकेट को एक नया आयाम दिया।

आईपीएल: क्रिकेट और बॉलीवुड का मिश्रण

आईपीएल ने क्रिकेट को बॉलीवुड और क्रिकेट का एक अनूठा मिश्रण बना दिया। 2008 में 2 बिलियन डॉलर की वैल्यू से शुरू होकर, 16 साल बाद इसकी ब्रांड वैल्यू 12 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई। बीसीसीआई, जो पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं थी, दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बन गई। 2024 में बीसीसीआई का रेवेन्यू 20,686 करोड़ रुपये था, जो ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट बोर्ड (658 करोड़) से 31 गुना ज्यादा था। आईपीएल ने युवा खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया और राष्ट्रीय टीम में सिलेक्शन का आधार बन गया।

आईपीएल के विवाद और स्कैंडल

लेकिन इतनी बड़ी सफलता के साथ अंधेरा भी आया। 47,000 करोड़ के ब्रॉडकास्ट राइट्स और 1,347 करोड़ के डिजिटल राइट्स के साथ, दुरुपयोग की संभावनाएं बढ़ गईं। ललित मोदी पर फ्रेंचाइज़ ओनरशिप में पक्षपात और 450 करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट में 125 करोड़ का कमीशन लेने के आरोप लगे। 2011 से 2013 के बीच स्पॉट फिक्सिंग ने आईपीएल की छवि को धक्का पहुंचाया। एक न्यूज़ चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में मोहनीश मिश्रा, शलभ श्रीवास्तव जैसे खिलाड़ियों के नाम सामने आए, जिन्हें बीसीसीआई ने बैन कर दिया।

2013 में दिल्ली पुलिस को टेरर एक्टिविटीज की जांच के दौरान स्पॉट फिक्सिंग का पता चला। कॉल मॉनिटरिंग से खुलासा हुआ कि टिंकू मंडी, किरण ढोले, और सुनील भाटिया जैसे बुकीज़, राजस्थान रॉयल्स के अजीत चंडीला और श्रीसंत जैसे खिलाड़ियों के साथ मिलकर फिक्सिंग कर रहे थे। 5 मई 2013 को चंडीला ने सिग्नल के तौर पर टी-शर्ट उठाने के बजाय 14 रन दिए, लेकिन सिग्नल देना भूल गए। 9 मई को श्रीसंत ने टॉवल को ट्राउज़र में टक कर और लंबा वार्म-अप करके फिक्सिंग की। 15 मई को पुलिस ने श्रीसंत, चंडीला, अंकित चावला और कई बुकीज़ को गिरफ्तार किया। सीएसके के प्रिंसिपल गुरुनाथ म्याप्पन और राजस्थान रॉयल्स के को-ओनर राज कुंद्रा के नाम भी सामने आए।

जनता का गुस्सा और बीसीसीआई की प्रतिक्रिया

पब्लिक गुस्से में सड़कों पर उतर आई। बीसीसीआई की बनाई कमेटी को मुंबई हाईकोर्ट ने अवैध घोषित किया, और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां मुद्गल और लोदा कमेटी बनी। बीसीसीआई ने खिलाड़ियों पर लाइफटाइम बैन लगाया, और सीएसकेराजस्थान रॉयल्स को दो साल के लिए सस्पेंड किया। लेकिन भारत में स्पॉट फिक्सिंग के लिए सख्त कानून न होने के कारण सजा असंगत रही। 2019 तक श्रीसंत और अन्य खिलाड़ियों पर से बैन हट गया।

निष्कर्ष: आईपीएल की विरासत

आईपीएल की कहानी जीत और विवादों की कहानी है। इसने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, लेकिन पैसे और ताकत के प्रलोभन ने इसे दागदार भी किया। यह भारत में क्रिकेट के जुनून का प्रतीक है, लेकिन यह भी सिखाता है कि जब कोई खेल खेल से बड़ा हो जाता है, तो क्या होता है।

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